जब हम-बग़ल वो सर्व क़बा पोश हो गया क़ुमरी का तौक़ हल्क़ा-ए-आग़ोश हो गया अशआर मेरे सुन के वो ख़ामोश हो गया ग़ुंचा ब-रंग-ए-गुल हमा-तन-गोश हो गया पी ग़ैर ने शराब मुझे बे-ख़ुदी हुई नश्शा चढ़ा किसी को मैं बेहोश हो गया इस दर्जा बे-ख़ुदी ने दिखाईं तअल्लियाँ गर्दूं ग़ुबार-ए-क़ाफ़िला-ए-होश हो गया तेग़-ए-अजल की काट से डरता नहीं हूँ मैं ज़ख़्मों से जिस्म-ए-ज़ार ज़िरा-पोश हो गया ऐ बुत ख़याल-ए-वस्फ़-ए-दहन में न पाई राह भटका फिरा सुख़न जो मैं ख़ामोश हो गया ख़ूँ-ख़्वारों के हुज़ूर न आया हमारी तरह आईना जौहरों से ज़िरा-पोश हो गया तालेअ' जगाए आप ने अर्बाब-ए-इश्क़ के यूसुफ़ का हुस्न ख़्वाब-ए-फ़रामोश हो गया पिन्हाँ है ज़ेर-ए-सब्ज़ा-ए-ख़त आतिश-ए-एज़ार शोला फ़ुसून-ए-हुस्न से ख़स-पोश हो गया हूरें गले लिपटती हैं आ आ के रात दिन जन्नत की राह कूचा-ए-आग़ोश हो गया उस मस्त-ए-हुस्न की निगह-ए-गर्म के हुज़ूर आईना-ए-जाम बादा-ए-सर-जोश हो गया बे-लुत्फ़ियों से तुम जो मिले मैं ने जान दी फाँसी गले में हल्क़ा-ए-आग़ोश हो गया अब्र-ए-सियह के साये ने सुर्मा खिला दिया सब्ज़ा तमाम तूती-ए-ख़ामोश हो गया काँधों से मेरे कातिब-ए-आमाल गिर पड़े तड़पा मैं इस क़दर कि सुबुक-दोश हो गया कानों का हुस्न जल्वा-ए-आरिज़ से पड़ गया रुख़ आफ़्ताब-ए-सुब्ह बुना-गोश हो गया उड़ता हूँ इश्क़ में लब लालीँ के ऐ 'मुनीर' गोया शरार आतिश-ए-ख़ामोश हो गया