जब हवा शब को बदलती हुई पहलू आई मुद्दतों अपने बदन से तिरी ख़ुश्बू आई मेरे नग़्मात की तक़दीर न पहुँचे तुझ तक मेरी फ़रियाद की क़िस्मत कि तुझे छू आई अपनी आँखों से लगाती हैं ज़माने के क़दम शहर की राह-गुज़ारों में मिरी ख़ू आई हाँ नमाज़ों का असर देख लिया पिछली रात मैं इधर घर से गया था कि उधर तू आई मुज़्दा ऐ दिल किसी पहलू तो क़रार आ ही गया मंज़िल-ए-दार कटी साअत-ए-गेसू आई