जब ज़रा तेज़ हवा होती है कैसी सुनसान फ़ज़ा होती है हम ने देखे हैं वो सन्नाटे भी जब हर इक साँस सदा होती है दिल का ये हाल हुआ तेरे बाद जैसे वीरान सरा होती है रोना आता है हमें भी लेकिन इस में तौहीन-ए-वफ़ा होती है मुँह-अँधेरे कभी उठ कर देखो क्या तर ओ ताज़ा हवा होती है अजनबी ध्यान की हर मौज के साथ किस क़दर तेज़ हवा होती है ग़म के बे-नूर गुज़रगाहों में इक किरन ज़ौक़-फ़ज़ा होती है ग़म-गुसार-ए-सफ़र-ए-राह-ए-वफ़ा मिज़ा-ए-आबला-पा होती है गुलशन-ए-फ़िक्र की मुँह-बंद कली शब-ए-महताब में वा होती है जब निकलती है निगार-ए-शब-ए-गुल मुँह पे शबनम की रिदा होती है हादसा है कि ख़िज़ाँ से पहले बू-ए-गुल गुल से जुदा होती है इक नया दौर जनम लेता है एक तहज़ीब फ़ना होती है जब कोई ग़म नहीं होता 'नासिर' बेकली दिल की सिवा होती है