जब झूट रावियों के क़लम बोलने लगे हर ख़ुद-सरी को जाह-ओ-हशम बोलने लगे इक इज़्न-ए-लब-कुशाई ने बेबाक कर दिया देखो किस ए'तिमाद से हम बोलने लगे कोई किसी से पूछ रहा था तिरा सुराग़ उठ उठ के मेरे नक़्श-ए-क़दम बोलने लगे समझे थे आस्तीन छुपा लेगी सब गुनाह लेकिन ग़ज़ब हुआ कि सनम बोलने लगे हक़-गोई के महाज़ पे मंज़र बदल गया ख़ामोश सब अरब हैं अजम बोलने लगे तंबीह की थी दिल की दहन भी सिए मगर मैं क्या करूँ कि दीदा-ए-नम बोलने लगे माहौल बद-गुमान था तंग आ के 'ताज' भी ख़ामोश होने वाले थे कम बोलने लगे