जब कभी ज़िक्र यार का आया By Ghazal << दुखों से और ग़मों से दोस्... ख़याल-ओ-ख़्वाब में दीवार-... >> जब कभी ज़िक्र यार का आया एक झोंका बहार का आया इश्क़ कच्चे घड़े पे डूब गया लम्हा जब इंतिज़ार का आया आ गए दिल में वसवसे कितने वक़्त जब ए'तिबार का आया पास तीर-ओ-कमाँ न थे अपने जब भी मौसम शिकार का आया हम ने ठुकरा दिया जहाँ को 'जोश' मरहला जब वक़ार का आया Share on: