जब कली कोई मुस्कुराती है जाने क्यों तेरी याद आती है सर पटकती हैं मौजें साहिल पर जब मिरी नाव डगमगाती है तू है या तेरी याद है ऐ दोस्त कोई शय दिल को गुदगुदाती है उन से क्या कहिए मुद्दआ' दिल का बात कहने से बात जाती है मेरे साज़-ए-हयात पर हर दम मौत मीठे सुरों में गाती है जब से बख़्शा है तुम ने ग़म मुझ को वुसअ'त-ए-क़ल्ब बढ़ती जाती है अज़्म-ए-मोहकम भी हो अगर हमराह ख़ैर-मक़्दम को मंज़िल आती है जो ख़ुदी को बुलंद रखते हैं सर पे दुनिया उन्हें बिठाती है इस तवक़्क़ो पे जी रहा हूँ 'बहार' जैसे अब आरज़ू बर आती है