जब किसी ने आन कर दिल से मिरे पुरख़ाश की बात तब आशिक़-गरी की मैं जहाँ में फ़ाश की क्या कहूँ जिस ने किया इस हुस्न को आरास्ता चूम लीजे उँगलियाँ यारो उसी नक़्क़ाश की ऐ मुसव्विर जो हुआ मनक़ूश तेरे हाथ से वो कहाँ तस्वीर बन सकती किसी से क़ाश की कल तिरे कूचे में मैं जा कर के सर अपना पटक रो पड़ा तुझ को नहीं पाया बहुत तालाश की यारो साक़ी और शराब-ओ-सब्ज़ा मौजूद आज है 'आफ़रीदी' है कबाब-ए-दिल पे जा शाबाश की