जब किसी सहरा से हो कर एक दरिया जाएगा तिश्नगी का ख़ौफ़ यारो दिल से मिटता जाएगा दिन मयस्सर हम को होगा क्या कभी ऐसा भी इक हर किसी इंसाँ के मुँह में जब निवाला जाएगा क्या अदावत रूप भी लेगी बग़ावत का कभी क्या कोई पत्थर यक़ीनन फिर उछाला जाएगा हादिसा सच-मुच हुआ था सामने मेरे मगर क्या हक़ीक़त को कभी काग़ज़ पे लिखा जाएगा देखना वो दौड़ता आ जाएगा मेरी तरफ़ जब इधर से उस की जानिब इक इशारा जाएगा अहल-ए-दिल से हो सकेगा आज मिलना क्या ख़बर देखना है हाथ से क्या ये भी मौक़ा जाएगा उस किनारे की तमन्ना तेरे दिल में है मगर तू समझ ले दूर तुझ से ये किनारा जाएगा इस जहाँ में हैं मुसाफ़िर की तरह 'आनंद' सब फ़ल्सफ़ा जिस ने ये समझा सुख वही पा जाएगा