जब किसी से वफ़ा करे कोई देख कर क्यों जला करे कोई ज़िंदगी क्यों हो वक़्फ़-ए-दैर-ओ-हरम मय-कदे भी चला करे कोई जब ग़म-ए-ज़ीस्त से निबाह न हो आरज़ू-ए-क़ज़ा करे कोई हिज्र में तेरे ऐ परी-पैकर कब तक आँसू पिया करे कोई जब अंधेरा हो चार सू 'ग़मगीन' दिल जला कर चला करे कोई