जब कोई आलम-ए-शुहूद न था मैं भी इक ख़्वाब था वजूद न था अपनी तख़्लीक़ से हुआ महदूद वर्ना मैं जानता हुदूद न था मुझ में भी लौ थी आग थी पहले मेरा सरमाया सिर्फ़ दूद न था जाने उस ने मुझे ख़रीदा क्यूँ मैं ज़ियाँ ही ज़ियाँ था सूद न था तर्ज़-ए-इज़हार ने किया मख़्सूस ख़ास अशआर का वरूद न था इक असीरी यहाँ थी शर्त-ए-शनाख़्त और मैं बंदा-ए-क़ुयूद न था तुझ से रंगीनी-ए-जहाँ है 'सुहैल' पहले ये रंग-ए-हसत-ओ-बूद न था