ज़लील-ओ-ख़्वार होती जा रही है ग़ज़ल अख़बार होती जा रही है सिमटता जा रहा है घर का आँगन अना दीवार होती जा रही है कोई बादल कोई सूरत कोई दिल नज़र बीमार होती जा रही है तबस्सुम ज़ेर-ए-लब है इक कहानी हया किरदार होती जा रही है हमारे सात ये बूढ़ी सदी भी गरेबाँ-तार होती जा रही है