जब कोई रास्ता नहीं होता कौन महव-ए-दुआ नहीं होता लोग ज़ुल्मत से यूँ ही नालाँ हैं रोज़-ए-रौशन में क्या नहीं होता टूटे तारों को छू के देखा है साज़-ए-दिल बे-सदा नहीं होता हर ख़ुशी दिल से क्यूँ लगा बैठें किस में ग़म हो पता नहीं होता आओ मिल बैठ लो घड़ी-दो-घड़ी उस घड़ी का पता नहीं होता सर्द-मेहरी हमारी आदत है वर्ना ज़र्रे में क्या नहीं होता फिर वही शब वही तवील सफ़र ख़त्म ये सिलसिला नहीं होता