जब मिरा महर जल्वा-गर होगा दोपहर होगा जो पहर होगा तुम नहीं करते क़त्ल तो न करो ज़हर में भी तो कुछ असर होगा ओ रक़ीबों की रौनक़-ए-महफ़िल इस तरफ़ भी कभी गुज़र होगा हज़रत-ए-दिल मिज़ाज कैसा है फिर भी उस कूचे में गुज़र होगा किस को मतलब है बे-कसों से 'हसन' कौन मेरा पयाम-बर होगा