जब न जीते-जी मिरे काम आएगी क्या ये दुनिया आक़िबत बख़्शाएगी जब मिले दो दिल मुख़िल फिर कौन है बैठ जाओ ख़ुद हया उठ जाएगी गर यही है इस गुलिस्ताँ की हवा शाख़-ए-गुल इक रोज़ झोंका खाएगी दाग़-ए-सौदा एक दिन देगा बहार फ़स्ल इस गुल की शगूफ़ा लाएगी कुछ तो होगा हिज्र में अंजाम-ए-कार बे-क़रारी कुछ न कुछ ठहराएगी संदली रंगों से माना दिल मिला दर्द सर की किस के माथे जाएगी ख़ाकसारों से जो रक्खेगा ग़ुबार ओ फ़लक बदली तिरी हो जाएगी जब करेगा गर्मियाँ वो शोला-रू शम-ए-महफ़िल देख कर जल जाएगी जाँ निकल जाएगी तन से ऐ 'नसीम' गुल को बू-ए-गुल हवा बतलाएगी