ये कोई दिल तो नहीं है कि ठहर जाएगा वक़्त इक ख़्वाब-ए-रवाँ है सो गुज़र जाएगा हर गुज़रते हुए लम्हे से यही ख़ौफ़ रहा हसरतों से मिरे दामन को ये भर जाएगा दिल शफ़क़-रंग हुआ डूबते सूरज की तरह रात आएगी तो हर ख़्वाब बिखर जाएगा शिद्दत-ए-ग़म से मिला ज़ीस्त को मफ़्हूम नया हम समझते थे कि दिल जीने से भर जाएगा चंद लम्हों की रिफ़ाक़त ही ग़नीमत है कि फिर चंद लम्हों में ये शीराज़ा बिखर जाएगा अपनी यादों को समेटेंगे बिछड़ने वाले किसे मालूम है फिर कौन किधर जाएगा यादें रह जाएँगी और यादें भी ऐसी जिन का ज़हर आँखों से रग-ओ-पै में उतर जाएगा