जब न था इश्क़ ये अज़ाब न था आतिश-ए-ग़म से दिल कबाब न था जिन दिनों ग़ैर बारयाब न था मैं वहाँ मौरिद-ए-इताब न था जब कि वो उम्र थे शबाब न था ये नक़ाब और ये हिजाब न था वो ख़फ़ा हो के हो गए ख़ामोश या मिरी बात का जवाब न था न रहा दिल पड़ी जो उस पे निगाह मौज के आते ही हबाब न था तेरे जाँ-बाज़ की दिलेरी वाह तह-ए-ख़ंजर भी इज़्तिराब न था ख़ैर गुज़री जो मोहतसिब आया सामने साग़र-ए-शराब न था सोज़-ए-ग़म दूद-ए-आह सैल-ए-सरिश्क हिज्र में कौन सा अज़ाब न था लब-ए-दरिया था सैर के क़ाबिल क्या मिरा दीदा-ए-पुर-आब न था दिल में था वलवलों का जोश-ओ-ख़रोश एक तूफ़ान था शबाब न था आज ही क्या नया है सोज़-ए-जिगर क्या कलेजा मिरा कबाब न था सैर को निकले वो जो ग़ैर के साथ कौन सा फ़ित्ना हम-रिकाब न था क्या सँभलता बिगड़ कर अपना हाल कुछ ज़माने का इंक़लाब न था उस की महफ़िल में शब को सब थे 'ख़याल' सिर्फ़ इक मैं ही बारयाब न था