जहाँ उस के जल्वे से मामूर है जिधर देखिए नूर ही नूर है रग-ए-जाँ से भी है वो नज़दीक-तर निगाहों से हर-चंद मशहूर है शहंशाह तू ही है ऐ ज़ुल-जलाल तिरा बंदा क़ैसर है मग़्फ़ूर है बंधी है हर इक दिल में तेरी ही धुन हर इक लब पे तेरा ही मज़कूर है तिरा जल्वा रग रग में है मिस्ल-ए-ख़ूँ तिरे नूर से आँख पुर-नूर है तिरे शुक्र का हक़ अदा किस से हो कहाँ आदमी का ये मक़्दूर है तअक़्क़ुल की सरहद से बाहर है तू अहाते से इदराक के दूर है तिरा नूर-ए-वहदत तग़य्युर से पाक तलव्वुन मज़ाहिर का दस्तूर है तिरे फ़ज़्ल का मुल्तजी है 'ख़याल' महीनों से बेचारा रंजूर है