जब नज़र जानिब-ए-अस्बाब-ए-फ़ना करते हैं पहले हम अपनी तरफ़ देख लिया करते हैं जिन को है तौक़-ओ-सलासिल के तक़ाज़ों का शुऊ'र वही पाबंदी-ए-आईन-ए-वफ़ा करते हैं काश हम को भी बता दें ये बताने वाले चोट लगती है कोई दिल पे तो क्या करते हैं तर्जुमानी का वसीला तो हैं दर-अस्ल ये अश्क दिल के मतलब को हम आँखों से अदा करते हैं तोहमत-ए-इश्क़ कहाँ और कहाँ ये मा'सूम मुफ़्त बदनाम 'मुनव्वर' को किया करते हैं