तूफ़ाँ से थपेड़ों के सहारे निकल आए डूबे थे बुरी तरह से बारे निकल आए पत्थर पे पड़ी चोट शरारे निकल आए बे-दर्द भी हमदर्द हमारे निकल आए अब तक कोई तस्कीन की सूरत नहीं निकली दिन ढल गया शाम आ गई तारे निकल आए उन को किसी हालत में न बख़्शेगा किनारा औरों को डुबो कर जो किनारे निकल आए देखे तो कोई मोजज़ा-ए-रब्त-ए-मोहब्बत उन आँखों से आज अश्क हमारे निकल आए जो चाहो करो आज से दुनिया है तुम्हारी अपना जिन्हें समझा वो तुम्हारे निकल आए ख़ुद मिल गए उस बुत से मुझे कर के नसीहत वाइज़ भी ख़ुदा ही के सँवारे निकल आए इक ऐसे बुज़ुर्ग आज 'नज़ीर' आ गए पीने मय-ख़ाने से हम शर्म के मारे निकल आए