जब साज़ की लय बदल गई थी वो रक़्स की कौन सी घड़ी थी अब याद नहीं कि ज़िंदगी में मैं आख़िरी बार कब हँसी थी जब कुछ भी न था यहाँ पे मा-क़ब्ल दुनिया किस चीज़ से बनी थी मुट्ठी में तो रंग थे हज़ारों बस हाथ से रेत बह रही थी है अक्स तो आइना कहाँ है तमसील ये किस जहान की थी हम किस की ज़बान बोलते हैं गर ज़ेहन में बात दूसरी थी तन्हा है अगर अज़ल से इंसाँ ये बज़्म-ए-कलाम क्यूँ सजी थी था आग ही गर मिरा मुक़द्दर क्यूँ ख़ाक में फिर शिफ़ा रखी थी क्यूँ मोड़ बदल गई कहानी पहले से अगर लिखी हुई थी