सामाँ तो बेहद है दिल में सब कुछ कार-आमद है दिल में आप कभी तशरीफ़ तो लाएँ इक आली मसनद है दिल में बा-ए-बिस्मिल्लाह खोलेगी जो क़ुफ़्ल-ए-अबजद है दिल में इश्क़ की औसत कम नहीं होती आज भी सद-फ़ी-सद है दिल में कोई बहस न कोई हुज्जत तू बे-रद्द-ओ-कद है दिल में तकता रहता हूँ सहरा से एक हरा गुम्बद है दिल में इश्क़ हो जैसे जान की बाज़ी ऐसी शद्द-ओ-मद है दिल में उस घर की वुसअत क्या कहना तुम जैसा ख़ुश-क़द है दिल में ये जन्नत भी है दोज़ख़ भी नेक है दिल में बद है दिल में बे-लौसी से आए हो सच-मुच या कोई मक़्सद है दिल में सर पे ज़रूरी काम पड़े हैं और आमद आमद है दिल में हम जाते हैं फ़ातिहा पढ़ने पुरखों का मशहद है दिल में क्यूँ खिंचते हैं 'शुऊर' आप आख़िर क्या हम से कुछ कद है दिल में