जब सजीले ख़िराम करते हैं हर तरफ़ क़त्ल-ए-आम करते हैं मुख दिखा छब बना लिबास सँवार आशिक़ों को ग़ुलाम करते हैं ये चकोरे मिल उस सिरीजन सूँ रात दिन अपना काम करते हैं यार को आशिक़ान-ए-साहब-फ़न एक देखे में राम करते हैं गर्दिश-ए-चश्म सूँ सिरीजन सब बज़्म में कार-ए-जाम करते हैं ये नहीं नेक तौर ख़ूबाँ के आश्नाई को आम करते हैं जी को करते हैं आशिक़ाँ तस्लीम जब वो हँस कर सलाम करते हैं मुर्ग़-ए-दिल के शिकार करने कूँ ज़ुल्फ़ ओ काकुल को दाम करते हैं शोख़ मेरा बुताँ में जब जावे उस को अपना इमाम करते हैं ख़ूब-रू आश्ना हैं 'फ़ाएज़' के मिल सबी राम राम करते हैं