जब से बदले हैं रंग पर्दे के By Ghazal << जाते जाते मुझे ख़ुशी दे द... जब जुदा होने का मंज़र आ ग... >> जब से बदले हैं रंग पर्दे के भाव कुछ बढ़ गए हैं कमरे के आइने आइनों में दिखते थे इतने चेहरे थे एक चेहरे के मैं ने देखे हैं सैकड़ों सूरज आज क़ाबिल नहीं है ज़र्रे के हम को मंज़िल तलाश करती है हम मुसाफ़िर हैं ऐसे रस्ते के Share on: