जब जुदा होने का मंज़र आ गया था एक क़तरे में समुंदर आ गया था हाथ में जब तेरे पत्थर आ गया था घर से मैं दीवाना बाहर आ गया था ढूँढता रहता हूँ आईने में ख़ुद को कौन मेरे इतने अंदर आ गया था पी लिया था एक कड़वा घूँट उस ने ज़ाइक़ा मेरे लबों पर आ गया था इश्क़ बस पहली दफ़ा अच्छा लगा था दूसरे चक्कर में चक्कर आ गया था इस लिए तेरी कहानी से हूँ बाहर मुझ से इक किरदार बेहतर आ गया था