जब से देखा जनाब का चेहरा दिल को भाया न दूसरा चेहरा आप को देख कर ये भेद खुला किस को कहते हैं चाँद सा चेहरा बे-सबब चाँद बाम पर आया सब की नज़रों में था तिरा चेहरा हुस्न देखो न हो कभी रुस्वा दूर से उन का देखना चेहरा पढ़ते पढ़ते हयात बीत गई कितनी लम्बी किताब था चेहरा हों निगाहें जो देखने वाली दिल का होता है आइना चेहरा सर तो सज्दे में झुक गया लेकिन था निगाहों में यार का चेहरा आज बैठे हैं बज़्म में ग़म्माज़ उन के चेहरे से तू हटा चेहरा चेहरे चेहरे चहार-सू चेहरे तुझ सा लेकिन कहाँ दिखा चेहरा किस तरह लोग हैं लगा लेते एक चेहरे पे नित-नया चेहरा हश्र में कैसे ले के जाओगे अपना कालिख-भरा 'सदा' चेहरा