जब से दिलबर ने आँख फेरा है मुझ को दौरान-ए-सर ने घेरा है कूचा-ए-ज़ुल्फ़ नित अंधेरा है वहाँ सियह-बख़्त दिल का डेरा है वज्द में हैं दिवाने अब्र को देख लैला-ए-फ़स्ल-ए-गुल का डेरा है यक्का आज़ाद है दो आलम से जो कि बे-दाम तेरा चीरा है गाल पर है किसी के काट का नक़्श मुँह पे ज़ुल्फ़ें तभी बिखेरा है नित बके है कि बावला 'उज़लत' ये न बोला कभू कि मेरा है