जब से हम रखने लगे हैं काम अपने काम से वो उधर आराम से हैं हम इधर आराम से ये भी कट जाएगी जो थोड़ी बहुत बाक़ी है उम्र हम यही करते रहेंगे काम अपने आम से इस दर-ए-इंसाफ़ के दरबाँ भी हैं मुंसिफ़ बहुत हम जूँही फ़रियाद से बाज़ आए वो दुश्नाम से आशिक़ी में लुत्फ़ तो सारा तजस्सुस की है देन कर दिया आग़ाज़ में क्यों आश्ना अंजाम से ख़ाक से बनती है जैसे ख़िश्त हम कुछ इस तरह देख क्या सोना बनाते हैं ख़याल-ए-ख़ाम से इस तरह मिल जाए शायद बारयाबी का शरफ़ मशवरा है अब के अर्ज़ी भेज फ़र्ज़ी नाम से या तो वो तस्वीर है पेश-ए-नज़र या कुछ नहीं हाथ धो दीदों से 'बासिर' ये गए अब काम से