ज़िंदगी दर्द से क़रीब रहे ग़म की दौलत मुझे नसीब रहे मौसम ऐसा भी हो कोई सय्याद बाग़ जब वक़्फ़-ए-अंदलीब रहे मुस्कुरा दो किसी की मय्यत पर मौत क्यों तीरा-ओ-मुहीब रहे वस्ल को वस्ल जानने के लिए ज़ीनत-ए-बज़्म इक रक़ीब रहे जान का खेल खेलने वालो इम्तिहाँ को दर-ए-हबीब रहे जाग कर मैं ने काट दीं रातें नींद में गुम मगर नसीब रहे किस ने 'अलताफ़' दी दुआ मुझ को दर्द से ज़िंदगी क़रीब रहे