जब से मर्क़ूम हो गया हूँ मैं नक़्श-ए-मफ़्हूम हो गया हूँ मैं ज़िल्लतों ने पनाह माँगी है इतना मज़्मूम हो गया हूँ मैं पूछो मस्लूब करने वालों से अब तो मासूम हो गया हूँ मैं जो अज़ल से न था मुक़द्दर में उस से महरूम हो गया हूँ मैं कैसा मौसम है इस इलाक़े का जिस से मस्मूम हो गया हूँ मैं अपनी क़िस्मत से मात खा कर भी तेरा मक़्सूम हो गया हूँ मैं मुस्कुराहट नगर में ऐ 'अख़्तर' आ के मग़्मूम हो गया हूँ मैं