जब से मेरे दिल में आ कर इश्क़ का थाना हुआ होश-ओ-सब्र-ओ-अक़्ल-ओ-दीं क्या सब से बेगाना हुआ दिल हमारा ख़ाना-ए-अल्लाह गर मशहूर था सो बुतों के इश्क़ में अब ये भी बुत-ख़ाना हुआ क़िस्सा-ए-फ़रहाद-ओ-मजनूँ रात दिन पढ़ते थे हम सो तो वो माज़ी पड़ा अब अपना अफ़्साना हुआ रात दिन ये सोच रहता है मिरे दल के तईं ऐ ख़ुदा याँ से वो जा कर किस का हम खाना हुआ क्या हक़ीक़त पूछता है मेरी तन्हाई की तू जब कि मेरे पास से प्यारे तिरा जाना हुआ भूक प्यास और नींद सब जाती रही ऐ जान-ए-मन बल्कि इन लोगों में मैं मशहूर दीवाना हुआ शैख़ जी आया न वा'दे पर तो अब 'आसिफ़' का यार तुम तो ख़ुश होगे तुम्हारा ही जो फ़रमाना हुआ