हर तार-ए-नफ़स ख़ार है मा'लूम नहीं क्यूँ आसान भी दुश्वार है मा'लूम नहीं क्यूँ सौ बार मरूँ और जियूँ तब उन्हें पाऊँ दिल इस पे भी तय्यार है मा'लूम नहीं क्यूँ सौ तरह के आराम मयस्सर सही लेकिन दिल जीने से बेज़ार है मा'लूम नहीं क्यूँ जो लज़्ज़ती-ए-जौर-ओ-जफ़ा था उसी दिल पर इक शोख़-नज़र बार है मा'लूम नहीं क्यूँ इक बार मिली उन से नज़र पी नहीं कोई फिर बहकी सी रफ़्तार है मा'लूम नहीं क्यूँ सौ जान से हम जिस पे फ़िदा होते हैं दिन-रात वो दरपय-ए-आज़ार है मा'लूम नहीं क्यूँ 'जामी' वो मुख़ातब हैं मगर अर्ज़-ए-तमन्ना फिर भी मुझे दुश्वार है मा'लूम नहीं क्यूँ