जब सुब्ह हुई आई जब साँझ ढली आई है याद तिरी तुझ सी बे-बाक चली आई था बे-नुमू सा मुझ में इक पौधा मोहब्बत का ये मो'जिज़ा है तेरा जो इस पे कली आई एहसान हवा का है बेकल मिरी साँसों पे ख़ुशबू तिरे दामन की ले कर ये चली आई आवाज़ तिरी रनझन पायल की हो जैसे धुन बातों में तिरी घुल के मिस्री की डली आई रफ़्तार अचानक ही धड़कन की बढ़ी जाए ये दिल का इशारा है अब तेरी गली आई क्यों शाम लगा आई वो सुर्ख़ तिरी बिंदी और हाथों में ये तेरी मेहंदी भी मली आई रुख़्सार पे है लाली माथे पे पसीना है ले रूप तिरा ले के अब सुब्ह चली आई