जब तक मौसम बीत न जाए चेहरों पर क्या सुर्ख़ी आए दिल अब उन के नाज़ उठाए प्यार किया है चोट भी खाए इश्क़ में ये लम्हात भी आए सिमटी धूप न फैले साए लूट जहाँ तक लूटा जाए शायद फिर ये दौर न आए आग भी बरसे अब्र भी छाए मौसम क्या जो तन्हा आए उन को दर दर ढूँडने वाला हो सकता है ख़ुद खो जाए दिल पर अब क्या क़हर नहीं है किस की आँख में आँसू आए अपनी छाँव में चलने वाला पहले हर दीवार गिराए साया तो है धूप का टुकड़ा छाँव कहाँ जो ठहरा जाए अब तक मंज़िल एक तसव्वुर आगे जो कुछ वक़्त बताए 'अंजुम' कोई तो अपना होगा सोचा लेकिन सोच न पाए