जन्नत तो न पाई निगह-ए-यार के पीछे By Ghazal << कश्मकश यूँ तो मुसलसल ही ज... जब तक मौसम बीत न जाए >> जन्नत तो न पाई निगह-ए-यार के पीछे दीवार ही थी साया-ए-दीवार के पीछे हर जिंस-ए-मोहब्बत है तिरे शहर में लेकिन गाहक सर-ए-बाज़ार न बाज़ार के पीछे नैरंगी-ए-दौराँ से अलग कोई नहीं है कुछ वार की ज़द में हैं तो कुछ दार के पीछे Share on: