जब तक मुझे नसीब तिरी दोस्ती रही हर जादा-ए-हयात में इक दिलकशी रही दिल में तिरे ख़याल की ताबानियों के साथ दर्द-ए-शब-ए-फ़िराक़ की भी तीरगी रही यूँ तो हर एक ग़म्ज़ा-ओ-इश्वा था दिल-फ़रेब लेकिन वो इक निगाह जो दिल पर जमी रही फिर इस के बा'द हो गई तारीक राह-ए-ज़ीस्त जब तक तुम्हारा साथ रहा रौशनी रही साक़ी तिरी नवाज़िश-ए-पैहम के बावजूद महसूस ये हुआ कि अभी तिश्नगी रही तुम क्या गए कि ज़िंदगी बे-कैफ़ हो गई जब तक कि तुम क़रीब रहे बे-ख़ुदी रही था इक हुजूम-ए-यास जो बढ़ता गया 'नदीम' महरूम-ए-इम्बिसात मिरी ज़िंदगी रही