जब तसव्वुर तिरा नहीं होता ज़िंदगी में मज़ा नहीं होता दर्द दिल का छुपाए रखने को मुस्कुराना बुरा नहीं होता ज़िंदगी हो के रह गई बोझल अब कोई हादसा नहीं होता शेर लिखता हूँ ख़ून से फिर भी दर्द का हक़ अदा नहीं होता उम्र गुज़री हमें सफ़र करते फ़ासला कम ज़रा नहीं होता याद-ए-माज़ी से क्यों उलझते हो इस से कुछ फ़ाएदा नहीं होता ज़िंदगी बोझ बन गई जब से ख़ौफ़ ग़म का ज़रा नहीं होता ऐ 'सहर' आई ये सहर कैसी कि उजाला ज़रा नहीं होता