जब तवाइफ़ शाह की रानी हुई घुंघरुओं की नज़र सुल्तानी हुई तेरे दम से घर था जन्नत की मिसाल तू गया जंगल सी वीरानी हुई आज तक दुनिया न दे पाई मिसाल क़र्न-ए-अव्वल में वो सुल्तानी हुई देखिए इंसान की फ़िरऔनियत बादशाही ज़िल्ल-ए-सुब्हानी हुई बर्फ़ जैसी थी हमारी ज़िंदगी लम्हा लम्हा घुल गई पानी हुई बैठे बैठे आ गया उन का ख़याल फ़िक्र की सादा क़बा धानी हुई चौंक उट्ठा नींद मेरी उड़ गई जब सुनी आवाज़ पहचानी हुई छोड़ दी 'वासिक़' किताब-ए-आगही तब तो जीने में परेशानी हुई