मुलम्मा' की फ़रावानी बहुत है मगर हर सम्त वीरानी बहुत है हक़ीक़त है ये अब अज़हर-मिनश्शम्स फ़रोग़-ए-फ़ित्ना-सामानी बहुत है फ़लक पर हैं तसव्वुर की कमंदें अमल-पैरा तन-आसानी बहुत है नहीं है साया-ए-दीवार सर पर ग़ुरूर-ए-ज़िल्ल-ए-सुब्हानी बहुत है कहानी है ये लैला-ए-ख़िरद की कि ये फ़ित्नों की दीवानी बहुत है चराग़-ए-आबला-पाई है रौशन फ़ज़ा-ए-दश्त-ए-नूरानी बहुत है बदलता है कोई सौ रूप बदले वो सूरत जानी पहचानी बहुत है नज़र साहिल पे रख पतवार पर हाथ ये ग़म कैसा कि तुग़्यानी बहुत है ख़ुदा पर रख भरोसा अज़्म दिल में बला से रात तूफ़ानी बहुत है 'सहर' आसाँ नहीं हम को मिटाना नतीजे में पशेमानी बहुत है