जब तेरे सिवा कोई मिरे काम न आए क्यों लब पे मोहब्बत से तिरा नाम न आए खिलते ही रहें दोनों गुलाबों की तरह से आग़ाज़ महकता रहे अंजाम न आए पड़ती ही रहें ज़ीस्त पे ख़ुर्शीद की किरनें अब सुब्ह के आलम पे रुख़-ए-शाम न आए होता ही रहे कैफ़-ए-मोहब्बत में इज़ाफ़ा नज़दीक कभी गर्दिश-ए-अय्याम न आए डाले है मुसीबत में न रक्खे है कहीं का अल्लाह किसी पर दिल-ए-नाकाम न आए राहों में नज़र आते हैं अब हुस्न के जल्वे उस शोख़ से कह दो कि लब-ए-बाम न आए जितने भी हो इल्ज़ाम सब आ जाएँ मिरे सर पर तुझ पे किसी बात का इल्ज़ाम न आए ये किस में है हिम्मत कि मिरे जान निकाले जब तक कि मुझे मौत का पैग़ाम न आए पीता रहूँ बद-मस्त निगाहों से मय-ए-शौक़ फिर ग़म नहीं हाथों में मिरे जाम न आए ऐ 'यास' बस अब वो ही मदद-गार है अपना कोई भी यहाँ इस के सिवा काम न आए