रहज़न रहबर हो जाते हैं कम-तर बरतर हो जाते हैं कोशिश कर के तुम भी देखो बद-तर बेहतर हो जाते हैं ग़म से साकित होने वाले इक दिन पत्थर हो जाते हैं हो जाते हैं आ'ला अदना अदना अफ़सर हो जाते हैं अपनी आब-ओ-ताब लुटा कर हीरे कंकर हो जाते हैं हक़ के मुक़ाबिल में बातिल के पसपा लश्कर हो जाते हैं जौर-ओ-जफ़ा को सहते सहते लोग सितमगर हो जाते हैं सोज़-ए-अलम से जलते जलते आँसू अख़गर हो जाते हैं ऐसे ऐसे खिलते हैं गुल हम भी शश्दर हो जाते हैं याद में उस की रो कर देखो आँसू गौहर हो जाते हैं याद में उस की रो कर देखो आँसू गौहर हो जाते हैं ऐसे भी हैं जो ग़ुस्से में हद से बाहर हो जाते हैं हिर्स-ओ-हवस में रहने वाले 'यास' का पैकर हो जाते हैं