जब तिलिस्म-ए-क़ुफ़्ल-ए-अबजद खुल गया हासिल-ए-गुफ़्तार-ए-सरमद खुल गया टूट कर आई है उस गुल पर बहार जिस्म लौ देने लगा क़द खुल गया सुब्ह लाई है रिहाई की नवेद आसमाँ खुलते ही गुम्बद खुल गया कार-ज़ार-ए-इश्क़ में आने के बा'द रंग-ए-मीरास-ए-अब-ओ-जद खुल गया ख़ुद-बख़ुद आया है लब पर उस का नाम रूह पर उन्वान-ए-अरशद खुल गया रेग-ए-सहरा ले उड़ी बाद-ए-शिमाल दश्त गुम होते ही मा'बद खुल गया आ गई 'साजिद' ज़बाँ पर दिल की बात आज आख़िर उन का मक़्सद खुल गया