जब तुझ से मिला हूँ तो तुझे यार कहा है जब मिल न सका हूँ तो दिल-आज़ार कहा है तू नूर-ए-नज़र जान-ए-जिगर रश्क-ए-क़मर है ओ रूह-ए-तग़ज़्ज़ुल तुझे गुलनार कहा है देखा जो तनासुब तिरे आ'ज़ा-ए-बदन का हर उज़्व को गुल ख़ुद तुझे गुलज़ार कहा है अब तक तिरी बातों की हलावत नहीं जाती जो तू ने कहा मैं ने वो सौ बार कहा है पूछी मिरी हाजत जो किसी ने शब-ए-यलदा मशअ'ल की बजाए तिरा रुख़्सार कहा है तस्वीरें मुसव्विर ने बनाईं तो बहुत पर सब ने तिरी तस्वीर को शहकार कहा है जब ख़ूब हुई मद्ह सितारों की तो मैं ने सब को तिरे तलवों का परस्तार कहा है जब मुझ से हुई मा'नी-ए-मेहराब की पुर्सिश उँगली से तिरे अबरू-ए-ख़मदार कहा है देखा जो मगस ने तिरे गुलफ़ाम लबों को ख़ुद को गुल-ओ-गुलज़ार से बेज़ार कहा है आँखें रम-ए-आहू-ओ-तिलिस्मात का संगम ऐना के लक़ब का तुझे हक़दार कहा है 'आइज़' ये तिरा ख़्वाब मगर वाए नदामत लोगों ने इसे इश्क़ का इज़हार कहा है