जब उस ज़ुल्फ़ की बात चली By Ghazal << सुब्ह-ए-रौशन को अंधेरों स... एक इक बात का पता है मुझे >> जब उस ज़ुल्फ़ की बात चली ढलते ढलते रात ढली उन आँखों ने लूट के भी अपने ऊपर बात न ली शम्अ' का अंजाम न पूछ परवानों के साथ जली अब के भी वो दूर रहे अब के भी बरसात चली 'ख़ातिर' ये है बाज़ी-ए-दिल इस में जीत से मात भली Share on: