जब उस से तर्क-ए-मुलाक़ात का इरादा किया तब उस ने दामन-ए-दिल को ज़रा कुशादा किया बस इक निगाह से उस की सदा रहे मख़मूर कभी न जाम उठाया न शग़्ल-ए-बादा किया फ़रेब दे के भी उस का क़ुसूर कम ही रहा कि हम ने उस पे भरोसा भी कुछ ज़ियादा किया शराफ़त और नजाबत का इस को ग़र्रा है हसब नसब से सिवा ज़िक्र-ए-ख़ानवादा किया जहान-ए-शेर-ओ-अदब में हमारा ज़िक्र भी है कि हम ने 'मीर' से 'ग़ालिब' से इस्तिफ़ादा किया मिरी ग़यूर तबीअत पे उस को हैरत है कि अर्ज़-ए-शौक़ का उस से न फिर इआदा किया ये और बात कि नाकामियाँ मुक़द्दर थीं 'हबाब' जो भी किया हम ने बिल-इरादा किया