क्या मैं इक हर्फ़ था लिखा यूँ ही मेरा होना भी बस हुआ यूँ ही जानती हूँ कि तुम को प्यार नहीं यूँ ही मुझ को लगा लगा यूँ ही इक ख़ुदा की वो बात करता था और फिर हो गया ख़ुदा यूँ ही क्या पता कब क़ुबूल हो जाए तू भी तो माँग लीं दुआ यूँ ही एक ख़दशा है बहके क़दमों से ढूँड ही लें न रास्ता यूँ ही वो हमारे थे और हम उन के आ गई दरमियाँ अना यूँ ही तुम ने जो कुछ कहा कहा यूँ ही मैं ने भी सुन लिया सुना यूँ ही एक लम्हे में दिल हुआ उन का हो गया था ये फ़ैसला यूँ ही क्या ज़रूरी है मंज़िलों का सफ़र तू भी चल कोई रास्ता यूँ ही मुख़्तसर सी है दास्ताँ 'मीता' हर कोई बस जिया जिया यूँ ही