जब उस ने गुफ़्तुगू ही से तासीर खींच ली मैं ने भी मेल-जोल में ताख़ीर खींच ली पहले तो मेरे हाथ में कश्कोल दे दिया फिर यूँ किया कि वक़्त ने तस्वीर खींच ली मेरे गुनाह क्या तिरी रहमत से बढ़ गए फिर क्यों मिरी दुआओं से तासीर खींच ली दिल ने अभी लिया ही था ताज़ा हवा में साँस फ़ौरन ही तू ने पाँव की ज़ंजीर खींच ली इक इख़्तिलाफ़-ए-राय पर इस दर्जा बरहमी क्यों दोस्त तू ने हिज्र की शमशीर खींच ली