दिल तिरी याद के सहारे पर ज़िंदगी किस तरह गुज़ारे पर हम दिल-ओ-जान हार बैठे हैं हुस्न के एक ही इशारे पर डार से हट के इक उड़ान भरी नोच डाले गए हमारे पर इश्क़ बुनियाद क्यों उठाता है अकसर-ओ-बेशतर ख़सारे पर हैं ब-ज़ाहिर जो मस्त मस्त नहीं आँख रखते हैं हर सितारे पर