जब वो पत्थर हो जाते हैं हम भी आज़र हो जाते हैं अश्क समुंदर हो जाते हैं या फिर लश्कर हो जाते हैं दर्द जब एहसाँ कर देता है लफ़्ज़ मुनव्वर हो जाते हैं ख़ंजर तन्हा रह जाता है ज़ख़्म बहत्तर हो जाते हैं मैं कुछ देर जो चुप रहता हूँ लोग सुख़नवर हो जाते हैं एक इमारत बन जाती है कितने बे-घर हो जाते हैं ख़्वाब नहीं थकते हैं माँ के गिरवी ज़ेवर हो जाते हैं शीशों से इतना मत खेलो शीशे ख़ंजर हो जाते हैं दिल का ख़ून बहुत होता है शे'र तो बेहतर हो जाते हैं