जब यार देखने को गुलज़ार घर से निकला आलम तब उस के बहर-ए-दीदार घर से निकला करने को क़त्ल आशिक़ वो तुंद-ख़ू कज-अबरू कज रख के सर पे अपनी दस्तार घर से निकला देता था वो किसी को गाली किसी को झिड़की जिस दम नशे में हो कर सरशार घर से निकला चंगा भला जो आया पास उस परी के 'माहिर' चलते हुए वो हो कर बीमार घर से निकला