ज़बाँ मुद्दआ-आश्ना चाहता हूँ दिल अब ज़िंदगी से ख़फ़ा चाहता हूँ अदा को अदा-आश्ना चाहता हूँ तुझी पर तुझे मुब्तिला चाहता हूँ वफ़ा चाहते हैं वफ़ा चाहता हूँ वो क्या चाहते हैं मैं क्या चाहता हूँ मोहब्बत को रुस्वा किया चाहता हूँ नज़र महरम-ए-इल्तिजा चाहता हूँ तअय्युन ग़म-ए-इश्क़ का चाहता हूँ उन्हें चाहता हूँ ये क्या चाहता हूँ तिरे दिल को दर्द-आश्ना चाहता हूँ भला चाहता हूँ बुरा चाहता हूँ बहुत तंग है वहम-ए-हस्ती की दुनिया मैं आलम ही अब दूसरा चाहता हूँ शब-ए-हिज्र तेरा तसव्वुर ही तो है तुझे आज तुझ से जुदा चाहता हूँ मिरी मौत मातम का हुस्न-ए-तलब है सुकूँ एक हंगामा-ज़ा चाहता हूँ ख़ता ढूँडता हूँ अताओं के क़ाबिल अता चाहते हैं ख़ता चाहता हूँ फिर उस बज़्म को ढूँडती हैं निगाहें फिर इक शिकवा-ए-बरमला चाहता हूँ वो फ़रियाद का अहद फिर याद आया फिर इक नाला-ए-ना-रसा चाहता हूँ फिर आदाब-ए-फ़ुर्क़त हैं मलहूज़ यानी हुजूम-ए-बला-दर-बला चाहता हूँ फिर इक सज्दा-ए-तौबा की आरज़ू है तुझे आप से फिर ख़फ़ा चाहता हूँ फिर उम्मीद-वार-ए-करम हूँ कि 'फ़ानी' सितम-हा-ए-शौक़-आज़मा चाहता हूँ कोई वजह-ए-तस्कीं नहीं ग़म न राहत ख़ुदा जाने 'फ़ानी' मैं क्या चाहता हूँ